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घोड़ासहन : आखिर दोषी कौन, घोड़ासहन के सुनयना स्वास्थ्य केंद्र में 7 महीने की प्रसूता के मौत का मामला



7 महीने की प्रसूता के मौत का मामला :

बीते दिनों घोड़ासहन के कुशवाहा नगर अवस्थित सुनयना स्वास्थ्य केन्द्र में डॉक्टर की लापरवाही के कारण एक प्रसूता की मौत का मामला प्रकाश में आया था। जिसमे भेलवा निवासी परिजनों के द्वारा सोमवार को रीमा देवी को सुनयना स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती कराया गया था। जहाँ ईलाज के क्रम में हार्ट अटैक से मौत होने की बात थाना को दिए आवेदन में परिजनों द्वारा बताया जा रहा है। पोस्टमार्टम पूर्व ही परिजनों के द्वारा कहे जाने वाली बात अपने आप में आश्चर्यजनक है। क्योंकि इन्ही परिजनों के द्वारा डॉक्टर की लापरवाही को लेकर अस्पताल में तोड़ फोड़ भी किया गया। 



आखिर क्यों हुआ हो हंगामा व तोड़ फोड़ :

परिजनों के अनुसार सोमवार को रीमा देवी चलते फिरते अस्पताल तक आई थी। उपस्थित डॉक्टर मोहन कुमार को परिजनों द्वारा सभी बात बता दी गयी। डॉक्टर के आश्वासन पर उसे भर्ती कराया गया। जहाँ उसे डेड बेबी हुआ। उसके बाद धीरे धीरे उसकी हालत ख़राब होती चली गयी और अंत में उसकी मौत हो गयी। जिसके बाद परिजनों ने ईलाज में लापरवाही का आरोप लगाते हो हंगामा व तोड़ फोड़ शुरू कर दिया। परिजनों का आरोप था कि जब सब बात शुरू में ही स्पष्ट कर दिया गया और स्वीकार कर ईलाज शुरू हुआ तो फिर ऐसा क्यों हुआ ? यदि मामला कंट्रोल में नहीं था तो रेफर करना था। अपने से गाड़ी मांगने पर डॉक्टर द्वारा नहीं जाने दिया गया। जिसके कारण मौत के बात परिजनों द्वारा हंगामा करने की बात भी सामने आ रही है। 



किनका है यह स्वास्थ्य केन्द्र और कौन-कौन हैं डॉक्टर :

इस सुनयना स्वास्थ्य केन्द्र के असल संचालक घोड़ासहन डीह निवासी डॉक्टर एस पी गुप्ता के छोटे पुत्र डॉक्टर मोहन कुमार बताए जा रहे हैं। जिसमे बतौर डॉक्टर इनके पिता डॉक्टर एस पी गुप्ता, इनके भाई डॉक्टर के एम गुप्ता जो घोड़ासहन सरकारी अस्पताल में पोस्टेड हैं, दूसरे भाई डॉक्टर सोहन कुमार, खुद डॉक्टर मोहन कुमार सहित कुछ अन्य डॉक्टर भी अपनी सेवा प्रदान करते हैं। जैसा कि इनके बोर्ड पर भी लगा हुआ है।



क्या है पूरा मामला :

परिजन व ग्रामीणों के अनुसार रीमा देवी को पहले से ऑपरेशन के माध्यम से दो बेटियां हैं। इन्हे और अधिक बेटी की ख्वाईस नहीं थी। जब अल्ट्रा साउंड के द्वारा स्पष्ट हो गया कि बेटी है, तो फिर इनकी चिंता बढ़ गयी। हलाकि तब तक देर भी हो चुकी थी। फिर सारी बातों को बताकर सुनयना स्वास्थ्य केन्द्र में डॉक्टर के आश्वासन पर कि काम हो जाएगा, भर्ती कर दिया गया। सोमवार को भर्ती करने के बाद डॉक्टर के द्वारा ईलाज शुरू कर दिया गया। ईलाज कामयाब भी रहा। फलस्वरूप डेड बेबी भी आ गया। लेकिन दवा के अत्यधिक मात्रा के कारण रीमा की हालत बिगड़ने लगी। ऐसे में रक्त की कमी होना आम बात है और रक्त की कमी से उसकी मौत हो गयी। जैसा कि कर्मियों द्वारा परिजनों को बताने की बात कही जा रही है। इसके पहले भी इसी तरह का एक मामला इसी सुनयना स्वास्थ्य केंद्र में होने के बाद भी लोगो द्वारा बताया जा रहा है। 



ऐसे में पुलिस की भूमिका :

ऐसे तो इसके पहले कई मामलो में पुलिस सेट हो गयी। आखिर सेट क्यों न हो। जब परिजन ही सेट हो जाए तो पुलिस क्या करें। हलाकि इस मामले में पुलिस द्वारा शव को कब्जे में कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। पोस्टमार्टम पूर्व ही हार्ट अटैक से मौत का आवेदन भी परिजनों द्वारा पुलिस को दिए जाने की बात बताई गयी है। इसके पूर्व मामले में भी परिजनों द्वारा इसी तरह का आवेदन पुलिस को दिया गया था। परन्तु ससुराल व मायके पक्ष में नहीं बनने के कारण भंडाफोड़ हो गया और कथित डॉक्टर सलाखों के पीछे है। अभी वाले मामले में भी पुलिस की भूमिका अहम् बताई जा रही है। हलाकि एक माह के अंदर ही इनका फिर से ट्रांसफर कर दिए जाने की बात भी सामने आ रही है। कुल मिलाकर करवाई के लिए पुलिस की निगाह पोस्टमार्टम पर टिकी हुई है। जिसके कारण सुनयना स्वास्थ्य केन्द्र के संचालक के द्वारा भी पोस्टमार्टम के टोह में घटना के दिन से ही लगे होने की बात भी सामने आ रही है। 



अब आखिर दोषी कौन :

अब सवाल यह है कि इस पुरे मामले में आखिर दोषी कौन है? 7 माह के बेटी को कोख में ही मारने का संकल्प लेने वाला परिजन, या अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी या अन्य माध्यम से जाँच कर बताने वाल, या इसके लिए अपने क्लिनिक में भर्ती कर ईलाज करने वाला डॉक्टर, या फिर मेल मिलाप कर इस मामले को सलटाने वाला, या फिर अन्य कोई, यह अभी भी एक यक्ष प्रश्न की तरह सामने खड़ा है ?


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